Tuesday, January 10

Maharaji's Childhood : Legend


Guru Maharaj Ji, the present Guru Maharaj Ji, was only 13 months old when he would wake every morning at four o'clock. This was at Dehra Dun, in the Divine Residence there. Many mahatmas and many premies and those people who are very dear to Shri Maharaj Ji were living at the Divine Residence at this time. And every morning at four AM Guru Maharaj Ji would get his stick and wake everybody up one by one, telling them to do meditation. He would quietly go to each person and get him to do meditation.
But he did not explain how to do meditation, and an idea came to my mind to ask Guru Maharaj Ji to do meditation . I wondered, how will he explain, does he know how to do meditation? So when I asked Guru Maharaj Ji how we should do meditation, he would sit in the posture of meditation and say, "Just by doing this...here, concentrate your mind here! "

Thursday, January 5

  बात 
     बातन-बातन बात है!
बनानेवाले ने तुमको ये ह्रदय  दिया है. बनाने वाले ने तुमको ये प्यास दी है. अपने पैरो पर खड़ा होओं . इस बात का अनुभव करो की ये प्यास क्या है? यह किस चीज़ की प्यास है?    महाराजी 

मनुष्य की प्रकृति  है की वह बिना सिखाये भी सीखता है. अगर छोटे से बच्चे को देखा जाये तो ये ज़रूरी नहीं है की कोई आकर के उसको सिखाये की चलना कैसे है. जब वह औरों को चलते हुए  देखता है तो अपने आप ही चलने की कोशिश करता है. मतलब ये कि सिखने कि गुन्जायिश सब में है. इस दुनिया में हम कुछ न कुछ जरूर सीखते हैं. परन्तु एक चीज़ रह जाती है- और वह है अपने बारे में सीखना, अपने ह्रदय के बारे में सीखना, अपने इस श्वास के बारे में सीखना.
संत-महात्माओं ने एक छोटी सी बात रखी है आगे. ये बात हम बड़ी आसानी से भुला देते हैं . क्योंकि ये बात ही कुछ ऐसी है कि हमको अच्छी नहीं लगती. वो बात है इस संसार से जाने कि. मैं देखता हूँ कि सवेरे-सवेरे जब लोग अपने काम पर जाते हैं और अगर बस पकडनी है या कहीं यात्रा कर रहे हैं; ट्रेन पकडनी है या कहीं हवाई जहाज़ से जाना है तो वे बड़ी तैयारी  करते हैं. अपना बिस्तर, बैग जो कुछ भी ले जाना है, सब कुछ साथ में है या नहीं? और वे बार-बार घडी देखते रहते हैं; क्या समय हुआ? अगर थोडा-बहुत भी लेट हो गए तो कहीं बस निकल न जाये. हम घडी देखते रहते हैं, क्योंकि हमको ये मालूम है कि बस को या ट्रेन को या हवाई जहाज़ को कितने बजे चलना है. संत-महात्माओं ने कहा है कि तुमको नहीं मालूम कि तुम्हारी जिंदगी कि गाड़ी को कितने बजे चलना है.  अगर तुमको ये मालूम होता कि यह जीवन कि गाड़ी कितने बजे चलेगी तो साडी बात आसान हो जाती. क्योंकि फिर घडी देख कर तुम कह सकते थे कि अभी तो चालीस साल और हैं. अभी वहां भी मज़ा लेंगे, वहां भी मज़ा लेंगे और बाद के पांच साल, छः साल हम इन चीजों में लगायेंगे. पर संत-महात्माओं ने ये तो बताया कि जाएगी, पर ये नहीं बताया कि ये गाडी कब जाएगी? जब औरों को जाते देखते हैं तो मालूम पड़ता है कि भाई, ये गया तो हमको भी जाना पड़ेगा. तब ये बात समझ में आती है.